Tuesday 3 June 2014

कहाँ खो गया बचपन ?

पिहू और प्राणु हफ्ते मे दो बार मेरे पास आते हैं जूनियर जागरण और बाल  प्रभात लेने ..एक दिन मैंने बच्चो से पूछा तुम लोग नंदन चम्पक पढ़ते हो या नहीं ? जवाब नहीं में आया ..


अपने बचपन में खो गया मै .. बहुत छोटा था और जब हिंदी पढ़ न पाता था ,तो अपनी बुआ से  कॉमिक्स पढ़ कर सुनाने को परेशान कर देता था शायद ?धीरे धीरे खुद सिख गया कॉमिक्स  और नंदन चम्पक पढना ..
चाचा चौधरी और साबू मेरे फेवरट पात्र थे .. नंदन आर्याव्रत के बाल क्लब का मेम्बर भी था और पत्र मित्र स्तम्भ के माध्यम से पोस्टकार्ड भेज कर मित्रता भी किया करता था.
उस समय घर में मैगज़ीन पिताजी मंगा दिया करते थे .


लेकिन अब तो दुनिया बदल गयी है . बच्चो के मैगज़ीन की जगह मोबाइल और कंप्यूटर  गेम्स और कार्टून नेटवर्क ने पूरी तरह ले ली है.
मनोवैज्ञानिको का मानना है की बल पत्रिकाओ के पढने से बच्चो में बौधिकता  का विकास तो होता ही है साथ में उनकी कल्पनाशक्ति का दायरा भी बढ़ता है  .
विशेषज्ञ  कश्मीर के किशोरों में बढ़ते आक्रोश का कारण बाल साहित्य से दुरी को भी बताते है (2010 के पत्थर बाजी के सन्दर्भ में ) 
खैर अब तो कागज की कश्ती भी नहीं रही बरसात में क्योंकि विकास का पैमाना सड़क घर के सामने बन गया है ..
और गुनगुनाने को दिल करता है मुझे लौटा दो बचपन का सावन ..




Saturday 24 May 2014

हम बदलेंगे सारा जहां




अब तो राजा भी आ चूका हैं ऐसा जिसने आँखों में आंखें डालकर बात करने का भरोसा दिया है .
न्यूज़ चैनल्स पर चल रही डिबेट और और विपक्ष का अपना विरोध कार्यक्रम.. कौन आएगा कौन नहीं इस पर  चल रही माथापच्ची और  तमिलो का विरोध .
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शतरंज के माहिर खिलाडी नरेंद्र मोदी ने एक तीर से कई निशानो को  साधने का प्रयास किया है .जहाँ एक ओर अन्तराष्ट्रीय समुदायों में स्पष्ट सन्देश जायेगा की भारत की नई सरकार अपने पडोसी देशो को साथ साथ ले कर चलना चाहती है वही दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के बुलावे पर मची धमा चौकड़ी थमने का नाम नहीं ले रही लेकिन शायद मोदी को भली भाती पता है कैसे पाकिस्तान की किरकिरी करवानी है और किस तरह शरीफ की शरीफियत का बाकायदा हिसाब किताब लिया जायेगा उनके यहाँ से जाने के बाद .. वाकई उनके लिए तो इद्धर भी कुआँ उधर खाई वाली कंडीशन हो गई है अगर आये तो पाकिस्तान में किरकिरी न आये तो पुरे संसार में .









भला हो इस देश की जनता का जिसने स्पष्ट बहुमत दे दिया चाहे कोई दल हो ,वरना ये रीजनल प्लेयर्स इस देश की विदेश नीति  की अनीति कर डालते .वैसे भी  दीदी और अम्मा के कर्मो की वजह से चीन और इस्लामिक उग्रपंथियो का प्रभाव बढ़ तो रहा ही था पडोसी देशो में .
विदेश नीति की दुर्गति करवा दिया इन लोगों ने .
 टीवी डिबेट कोसते नज़र आ रहे वो लोग जो अपने कार्यकाल मे सिर्फ मूक दर्शक बने फिर रहे थे और शर्म से पानी पानी खुद तो नहीं हो रहे थे बल्कि देश को करवा रहे थे .
खैर वक़्त अभी बदलाव की उम्मीद किये हुए है .. देखते है आगे आगे  होता है क्या !!




Tuesday 13 May 2014

वे कहा गये हमें छोड़ के !

राजीव अभी निगम बोध घाट से घर लौटा अपनी माँ का दाह संस्कार कर के   .. परेशान और बेबश ..उसे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था की आखिर उसके साथ हो क्या गया .. घर में सामान खोजता  है फिर  बुदबुदाता है पता नहीं मम्मी ने मेरा पर्स कहा रख दिया .. और अचानक रोने लगता है .. अब उसकी माँ नही रही  उसकी जिन्दगी तो भई उसके माँ के इर्दगिर्द ही  घूम रही थी ..

"माँ" ये शब्द शायद छोटा हो लेकिन काफी कुछ खुद में समेटे और संजोये हुये है ..
इन्सान हमेशा अपने दुःख को भूलना चाहता है आखिर ज़िन्दगी न रूकती है और न ही रुकेगी
लेकिन आज वो अकेला है एकदम अकेला न उससे कोई बात करने वाला बचा न उसकी मनोभावना को समझने वाला .. परिस्थितिया कुछ ऐसी  बन गई थी शायद !!